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कपास की फसल

कृषि वैज्ञानिक कपास की इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह दे रहे हैं

कृषि वैज्ञानिक कपास की इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह दे रहे हैं

वर्तमान में गेहूं की फसल की कटाई हो चुकी है। साथ ही, कपास की बुवाई (cotton sowing) का वक्त प्रारंभ हो गया है। अब ऐसी स्थिति में जो किसान गेहूं के पश्चात कपास की खेती (cotton cultivation) करना चाहते हैं, उनके लिए कपास की बुवाई की कई बेहतरीन किस्में हैं, जो बेहतर उत्पादन प्रदान कर सकती हैं। 

कृषि वैज्ञानिकों ने अमेरिकन कपास या नरमा की खेती करने वाले कृषकों के लिए सलाह भी जारी कर दी है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से कपास की अनुशंसित किस्में लगाने की सलाह दी जा रही है। 

इसके साथ इसकी बुवाई में ध्यान रखने वाली आवश्यक बातों के विषय में भी बताया जा रहा है। विभाग की तरफ से राजस्थान के कृषकों को 20 मई तक कपास की बिजाई करने के लिए कहा जा रहा है, जिससे कि कपास में गुलाबी सुंडी का प्रकोप न हो सके। इसके साथ ही कपास की उन्नत किस्मों के विषय में भी बताया जा रहा है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2818 किस्म 

RS of Narma (Cotton) 2818 नरमा आर.एस किस्म से 31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज हांसिल की जा सकती है। इसके रेशे की लंबाई 27.36 मिलीमीटर, मजबूती 29.38 ग्राम टेक्स आंकी गई है। 

टिंडे का औसत भार 3.2 ग्राम होता है। बिनौलों में 17.85 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। इसकी ओटाई 34.6 प्रतिशत आंकी गई है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2827 किस्म 

RS of Narma (Cotton) 2827 नरमा (कपास) की आर.एस- 2827 किस्म से औसत 30.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 

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इसके रेशे की लंबाई 27.22 मिलीमीटर व मजबूती 28.86 ग्राम व टेक्स आंकी गई है। इसके टिंडे का औसत वजन 3.3 ग्राम होता है। इसके बिनौले में तेल की मात्रा 17.2 फीसद होती है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 2013 किस्म

RS of Narma (Cotton) 2013 नरमा (कपास) की आरएस 2013 किस्म की ऊंचाई 125 से 130 सेमी होती है। इसकी पत्तियां मध्यम आकार की व हल्के हरे रंग की होती हैं। 

इसके फूलों की पखुड़ियों का रंग पीला होता है। यह किस्म 165 से 170 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में गुलाबी सुड़ी द्वारा हानि अन्य किस्मों की अपेक्षा कम होती है। 

यह किस्म पत्ती मरोड़ विषाणु बीमारी के प्रति भी अवरोधी है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 23 से 24 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

नरमा (कपास) की आरएसटी 9 किस्म 

RST 9 variety of Narma (cotton) नरमा (कपास) की आरएसटी 9 किस्म के पौधे की ऊंचाई 130 से 140 सेमी तक होती है। इसकी पत्तियां हल्के रंग की होती हैं और फूल का रंग हल्का पीला होता है। 

इसमें चार से छह एकांक्षी शाखाएं होती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम है, जिसका औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। यह किस्म 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

तेला (जेसिड) रोग से इस किस्म में कम हानि होती है। इस किस्म की ओटाई का प्रतिशत भी अन्य अनुमोदित किस्मों से अधिक है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 810 किस्म

RS of Narma (Cotton) 810 नरमा (कपास) की आर.एस. 810 किस्म के पौधे की ऊंचाई 125 से 130 सेमी होती है। इसके फूलों का रंग पीला होता है। इसके टिंडे का आकार छोटा करीब 2.50 से 3.50 ग्राम होता है। 

इसके रेशे की लंबाई 24 से 25 मिलीमीटर व ओटाई क्षमता 33 से 34 फीसद होती है। यह किस्म 165 से 175 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 

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यह किस्म पत्ती मोड़क रोग की प्रतिरोधी है। इस किस्म से लगभग 23 से 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज हांसिल की जा सकती है।

नरमा (कपास) की आर.एस. 875 किस्म

RS of Narma (Cotton) 875 नरमा (कपास) की आर.एस. 875 किस्म के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेमी होती है। इसकी पत्तियां चौड़ी व गहरे हरे रंग की होती हैं। इसमें शून्य यानी जीरो से एक एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। 

इसके टिंडे का आकार मध्यम होता है और औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। इसके रेशे की लंबाई 27 मिलीमीटर होती है। इसमें तेल की मात्रा 23 प्रतिशत पाई जाती है, जो कि अन्य अनुमोदित किस्मों से ज्यादा है। 

इस किस्म की फसल 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई भी की जा सकती है।

बीकानेरी नरमा

बीकानेरी नरमा  (Bikaneri Narma) किस्म के पौधे की ऊंचाई लगभग 135 से 165 सेमी होती है। इसकी पत्तियां छोटी, हल्के हरे रंग की होती है और फूल छोटे और हल्के पीले रंग के होते हैं। 

इसमें चार से छह एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम और औसत वजन 2 ग्राम होता है। इसकी फसल 160 से 200 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म में तेला (जेसिड) से अपेक्षाकृत कम हानि होती है।

मरू विकास (राज, एच.एच. 6) 

Desert Development (Kings, HH 6) नरमा (कपास) की मरू विकास (राज, एच.एच. 6) के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेमी. और पत्तियां चौड़े आकार की होती हैं। इसका रंग हरे रंग का होता है। 

इसमें शून्य यानी जीरो से एक एकांक्षी शाखाएं पाई जाती हैं। इसके टिंडे का आकार मध्यम और औसत वजन 3.5 ग्राम होता है। इसके रेशे की लंबाई 27 मिलीमीटर होती है। 

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इसमे तेल की मात्रा 23 प्रतिशत पाई जाती है। इस किस्म की फसल 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे उसी खेत में सामान्य समय पर गेहूं की बुवाई कर सकते हैं।

नरमा कपास की उन्नत किस्मों की बुवाई का तरीका 

नरमा कपास की उन्नत किस्मों की बुवाई के लिए 4 किलोग्राम प्रति बीघा की दर से बीज की जरूरत पड़ती है। बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति का फासला 67.50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे का फासला लगभग 30 सेंटीमीटर रखना चाहिए।

नरमा की बुवाई का समय 15 अप्रैल से 15 मई तक माना जाता है। लेकिन किसान मई के अंत तक इसकी बिजाई कर सकते हैं।

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून का मौसम किसान भाइयों के लिए कुदरती वरदान के समान होता है। मानसून के मौसम होने वाली बरसात से उन स्थानों पर भी फसल उगाई जा सकती है, जहां पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। पहाड़ी और पठारी इलाकों में सिंचाई के साधन नही होते हैं। इन स्थानों पर मानसून की कुछ ऐसी फसले उगाई जा सकतीं हैं जो कम पानी में होतीं हों। इस तरह की फसलों में दलहन की फसलें प्रमुख हैं। इसके अलावा कुछ फसलें ऐसी भी हैं जो अधिक पानी में भी उगाई जा सकतीं हैं। वो फसलें केवल मानसून में ही की जा सकतीं हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन सी फसलें मानसून के दौरान ली जा सकतीं हैं।

मानसून सीजन में बढ़ने वाली 5 फसलें:

1.गन्ना की फसल

गन्ना कॉमर्शियल फसल है, इसे नकदी फसल भी कहा जाता है। गन्ने  की फसल के लिए 32 से 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना चाहिये। ऐसा मौसम मानसून में ही होता है। गन्ने की फसल के लिए पानी की भी काफी आवश्यकता होती है। उसके लिए मानसून से होने वाली बरसात से पानी मिल जाता है। मानसून में तैयार होकर यह फसल सर्दियों की शुरुआत में कटने के लिए तैयार हो जाती है। फसल पकने के लिए लगभग 15 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है। गन्ने की फसल केवल मानसून में ही ली जा सकती है। इसकी फसल तैयार होने के लिए उमस भरी गर्मी और बरसात का मौसम जरूरी होता है। गन्ने की फसल पश्चिमोत्तर भारत, समुद्री किनारे वाले राज्य, मध्य भारत और मध्य उत्तर और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में अधिक होती है। सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन तमिलनाडु राज्य  में होता है। देश में 80 प्रतिशत चीनी का उत्पादन गन्ने से ही किया जाता  है। इसके अतिरिक्त अल्कोहल, गुड़, एथेनाल आदि भी व्यावसायिक स्तर पर बनाया जाता है।  चीनी की अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मांग को देखते हुए किसानों के लिए यह फसल अत्यंत लाभकारी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=XeAxwmy6F0I&t[/embed]

2. चावल यानी धान की फसल

भारत चावल की पैदावार का बहुत बड़ा उत्पादक देश है। देश की कृषि भूमि की एक तिहाई भूमि में चावल यानी धान की खेती की जाती है। चावल की पैदावार का आधा हिस्सा भारत में ही उपयोग किया जाता है। भारत के लगभग सभी राज्यों में चावल की खेती की जाती है। चावलों का विदेशों में निर्यात भी किया जाता है। चावल की खेती मानसून में ही की जाती है क्योंकि इसकी खेती के लिए 25 डिग्री सेल्सियश के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है और कम से कम 100 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून से पानी मिलने के कारण इसकी खेती में लागत भी कम आती है। भारत के अधिकांश राज्यों व तटवर्ती क्षेत्रों में चावल की खेती की जाती है। भारत में धान की खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है। इससे यहां पर चावल की पैदावार अच्छी होती है। पूरे भारत में तीन राज्यों  पंजाब,पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक चावल की खेती की जाती है। पर्वतीय इलाकों में होने वाले बासमती चावलों की क्वालिटी सबसे अच्छी मानी जाती है। इन चावलों का विदेशों को निर्यात किया जाता है। इनमें देहरादून का बासमती चावल विदेशों में प्रसिद्ध है। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में भी चावल केवल निर्यात के लिए उगाया जाता है क्योंकि यहां के लोग अधिकांश गेहूं को ही खाने मे इस्तेमाल करते हैं। चावल के निर्यात से पंजाब और हरियाणा के किसानों को काफी आय प्राप्त होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

3. कपास की फसल

कपास की खेती भी मानसून के सीजन में की जाती है। कपास को सूती धागों के लिए बहुमूल्य माना जाता है और इसके बीज को बिनौला कहते हैं। जिसके तेल का व्यावसायिक प्रयोग होता है। कपास मानसून पर आधारित कटिबंधीय और उष्ण कटिबंधीय फसल है। कपास के व्यापार को देखते हुए विश्व में इसे सफेद सोना के नाम से जानते हैं। कपास के उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। कपास की खेती के लिए 21 से 30 डिग्री सेल्सियश तापमान और 51 से 100 सेमी तक वर्षा की जरूरत होती है। मानसून के दौरान 75 प्रतिशत वर्षा हो जाये तो कपास की फसल मानसून के दौरान ही तैयार हो जाती है।  कपास की खेती से तीन तरह के रेशे वाली रुई प्राप्त होती है। उसी के आधार पर कपास की कीमत बाजार में लगायी जाती है। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश,हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक,तमिलनाडु और उड़ीसा राज्यों में सबसे अधिक कपास की खेती होती है। एक अनुमान के अनुसार पिछले सीजन में गुजरात में सबसे अधिक कपास का उत्पादन हुआ था। अमेरिका भारतीय कपास का सबसे बड़ा आयातक है। कपास का व्यावसायिक इस्तेमाल होने के कारण इसकी खेती से बहुत अधिक आय होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=nuY7GkZJ4LY[/embed]

4.मक्का की फसल

मक्का की खेती पूरे विश्व में की जाती है। हमारे देश में मक्का को खरीफ की फसल के रूप में जाना जाता है लेकिन अब इसकी खेती साल में तीन बार की जाती है। वैसे मक्का की खेती की अगैती फसल की बुवाई मई माह में की जाती है। जबकि पारम्परिक सीजन वाली मक्के की बुवाई जुलाई माह में की जाती है। मक्का की खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है। गर्म मौसम की फसल है और मक्का की फसल के अंकुरण के लिए रात-दिन अच्छा तापमान होना चाहिये। मक्के की फसल के लिए शुरू के दिनों में भूमि ंमें अच्छी नमी भी होनी चाहिए। फसल के उगाने के लिए 30 डिग्री सेल्सियश का तापमान जरूरी है। इसके विकास के लिए लगभग तीन से चार माह तक इसी तरह का मौसम चाहिये। मक्का की खेती के लिए प्रत्येक 15 दिन में पानी की आवश्यकता होती है।मक्का के अंकुरण से लेकर फसल की पकाई तक कम से कम 6 बार पानी यानी सिंचाई की आवश्यकता होती है  अर्थात मक्का को 60 से 120 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून सीजन में यदि पानी सही समय पर बरसता रहता है तो कोई बात नहीं वरना सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। अन्यथा मक्का की फसल कमजोर हो जायेगी। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में सबसे अधिक मक्का की खेती होती है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में भी इसकी खेती की जाती है।

5.सोयाबीन की फसल

सोयाबीन ऐसा कृषि पदार्थ है, जिसका कई प्रकार से उपयोग किया जाता है। साधारण तौर पर सोयाबीन को दलहन की फसल माना जाता है। लेकिन इसका तिलहन के रूप में बहुत अधिक प्रयोग होने के कारण इसका व्यापारिक महत्व अधिक है। यहां तक कि इसकी खल से सोया बड़ी तैयार की जाती है, जिसे सब्जी के रूप में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। सोयाबीन में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट और वसा अधिक होने के कारण शाकाहारी मनुष्यों के लिए यह बहुत ही फायदे वाला होता है। इसलिये सोयाबीन की बाजार में डिमांड बहुत अधिक है। इस कारण इसकी खेती करना लाभदायक है। सोयाबीन की खेती मानसून के दौरान ही होती है। इसकी बुवाई जुलाई के अन्तिम सप्ताह में सबसे उपयुक्त होती है। इसकी फसल उष्ण जलवायु यानी उमस व गर्मी तथा नमी वाले मौसम में की जाती है। इसकी फसल के लिए 30-32 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है और फसल पकने के समय 15 डिग्री सेल्सियश के तापमान की जरूरत होती है।  इस फसल के लिए 600 से 850 मिलीमीटर तक वर्षा चाहिये। पकने के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=AUGeKmt9NZc&t[/embed]
कपास पर प्रति क्विंटल १२००० रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे किसान, उत्पादन में कमी से अंतर्राष्टीय बाजार भी चिंतिंत

कपास पर प्रति क्विंटल १२००० रुपये न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे किसान, उत्पादन में कमी से अंतर्राष्टीय बाजार भी चिंतिंत

किसान कपास (cotton) की फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ोत्तरी को लेकर मांग कर रहे हैं, जिसके लिए किसान २९ -३१ अक्टूबर इसके लिए विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं। आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्यों में कपास उत्पादन करने वाले किसान चालू सीजन के चलते ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में १२००० रुपये की बढ़ोत्तरी की मांग सरकार के समक्ष रख रहे हैं। कपास किसान संगठन ने बताया है कि, मांगों के सम्बन्ध में २९ से ३१ अक्टूबर तक प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें राज्य में कपास की खेती करने वाले सभी किसान शम्मिलित होंगे। कपास किसानों का दावा है कि एक क्विंटल कपास उत्पादन के लिए ₹८००० प्रति क्विंटल खर्च होता है। इस साल असामान्य रहे मॉनसून के कारण कपास की फसल प्रभावित हुई है। इससे उन्हें अतिरिक्त श्रम और फसल की देखरेख के लिए अधिक व्यय सहन करना पड़ा है, हालांकि भारत की बात करें तो देश में इस बार कपास का रकबा ७ प्रतिशत अधिक है।


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सितंबर माह तक लगभग १२६ लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई संपन्न हो चुकी है, पिछले साल की समान अवधि में कपास का रकबा ११७ लाख हेक्टेयर था। मंडियों में कपास की आवक होने के साथ ही हाजिर बाजार में कपास के दामों में कमी दर्ज की गई है। पिछले एक सप्ताह में लगभग कपास का भाव ४ प्रतिशत से घटकर ₹४३००० प्रति गांठ तक पहुँच चुका था। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CIA) के अध्यक्ष अतुल गनात्रा ने बताया है कि १४ सालों की रिकॉर्ड कमी के उपरांत कपास फसल के क्षेत्र में इस साल १० प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। मॉनसून सक्रिय होने के कारण इस साल तेलंगाना के अतिरिक्त कई राज्यों में प्रति हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि का अनुमान है। गुजरात में इस वर्ष ९१ लाख कपास की गांठ एवं महाराष्ट्र में ८४ लाख गांठ तैयार होने की सम्भावना है। वहीं मध्य प्रदेश में पिछले साल की अपेक्षा में इस साल २० लाख गांठ बढ़कर १९५ लाख गांठ तैयार होने की सम्भावना है। उत्तर भारत की बात करें तो पंजाब सहित अन्य प्रदेशों में रूई का उत्पादन ५० लाख गांठ के लगभग होगा।

कपास उत्पादन के सम्बन्ध में अंतरराष्ट्रीय बाजार भी चिंतित

रॉयटर ने एक रिपोर्ट के मुताबिक कहा है कि भारत इस बार कपास के निर्यात में कमी करेगा। नवीन सत्र में भारत निर्यात घटाकर ३५ लाख गांठ कर सकता है। इसकी प्रमुख वजह देश में कपास की खपत बढ़ने एवं उत्पादन में कमी होना है। अमेरिकी कृषि विभाग द्वारा कपास की कम पैदावार होने के सन्दर्भ चिंता जताते हुए कहा है कि कपास का आयात एवं निर्यात पिछले सालों की अपेक्षा में सबसे निचले पायदान पर आ गया है।
कपास की फसल पैदा करने वाले किसानों का बढ़ा संकट

कपास की फसल पैदा करने वाले किसानों का बढ़ा संकट

हाल ही में न्यूज़ में देखा गया की तेलंगाना में कपास की कीमतों में भरी गिरावट दर्ज की गई है, कपास का दाम केवल 6500 रुपये क्विंटल हो या है जिसकी वजह से किसानों की हालत चिंताजनक है। 

किसानों से हुई बातचीत में पता चला कि वह दाम कम से कम 15000 रुपये क्विंटल चाहते हैं। इस साल कपास की फसल की बात की जाए तो देश में इस साल किसानों को फसलों का काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। 

इसके अलावा कुछ फसल की खेती जैसे पपीता, सेब और संतरे आदि की फसल को भी पहले से ज्यादा नुक्सान पहुंचा है। कभी बाढ़ तो कभी बारिश के कारण किसानों को ये समस्या झेलनी पड़ती है। 

हाल ही में कपास की कीमत कम होने से किसान परेशान हैं। सही रेट न मिलने से किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही है।

तेलंगाना में 6000 रुपये क्विंटल तक हो गया है कपास का मूल्य

इस बार कपास की कीमत का संकट सबसे ज्यादा तेलंगाना के किसानों को परेशान कर रहा है। मीडिया के हवाले पता चला है, कि इस साल का दाम बेहद कम रखा गया है। 

पहले जिस फसल के लिए 15000 रुपये क्विंटल तक मिलते थे। वो अब महज 6000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। इतने कम दाम होने के कारण किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही है। 

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बारिश के चलते उत्पादन में आई गिरावट

एक्सपर्ट के अनुसार इस बार भारी बारिश के चलते फसल मेें आई पत्तियों के कारण डोड़े की बढ़त को नुकसान हुआ है। प्रोडक्शन में भारी गिरावट आ गई है। Production में करीब 50 प्रतिशत गिरावट आने की संभावना है। 

वहीं, विशेषज्ञों का कहना है, कि बाजार में कपास की कीमत 6 हजार से लेकर 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल के बीच है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इसे 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल कर देना चाहिए।

कीमत सही न मिलने पर किसान कर सकते हैं विरोध प्रदर्शन

कपास के सही दाम न मिलने से किसान परेशान हैं। किसान जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों का कहना है, कि यदि राज्य सरकार 15000 रुपये प्रति क्विंटल कपास का रेट नहीं करती है तो पूरे प्रदेश में धरना-प्रदर्शन करेंगे। 

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पंजाब में भी कपास उत्पादकों का है यही हाल

पंजाब में कपास उत्पादन में 45% तक की बड़ी गिरावट देखने को मिली है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 3 सालों से पंजाब में कपास की अच्छी पैदावार हो रही थी। 

इतनी अच्छी पैदावार से सभी खुश थे, लेकिन हाल ही में यहां कपास में गुलाबी वार्म और कई तरह के कीट होने के कारण किसानों की पैदावार में घटोतरी हुई है।